शरीर...

जिम की तस्वीर को अगर देखा जाए तो उसका सामान ओर आकर्षित शरीर ही उसकी नज़र को और गाढ़ा करता है।
जो कई तरीकों से अपने आकर्षण को बयां करते फिरते हैं, कभी दोस्तों की मंडलियों में तो कभी देखा-देखी में जिसमें बनने-बनाने की बातें जो सामने वाले से होकर आपके अपने शरीर की बनावट तक आकर रूक जाती हैं। कि
"काश मैं भी ऐसा होता?“
अगर मैं भी जिम जाने लगू तो कैसा लगूंगा?

मेरे शरीर के साथ-साथ मेरे कपड़े पहनने के तरीकों में कितना फर्क आ जाएगा? ऐसे कितने ही सपने जो कल्पना की उड़ान में हमको हमारा जिम से जुड़ा आने वाला कल दिखाता है। ऐसी बहुत सी बातें या अपने आप को देखने की नज़र का बदलना दिमाग में जिम की तस्वीर को और गाढ़ा कर देता है और फिर एक ज़िद्द या अच्छा शरीर पाने की तमन्ना हमको जिम की ओर खींच लेती है।

जिसके खिंचाव के दोरान ऐसे बहुत से शरीर, बहुत सी बातें आपकी उत्सुक़्ता को और बढ़ा देती है जिसमे हम कई पड़ावों को अपना लेते हैं सिर्फ़ अपने मैं के लिए और वो पड़ाव कभी जिम को लेकर खर्च होता है तो कभी उसके लिए टाइम निकालना या दोस्तों से कटना। और यही मैं अपने आपसे एक आस लगा बैठता है, पतले हाथों को डोलों में तबदील होते हुए, पतले बदन को चौड़ा सीना बनते हुए देखना चाहता है

जिसमें मैं भी सामने वाले के लिए एक आकर्षण बनके निकलू और ओरों को एक नज़र दूं कि "ऐसा होता है शरीर"


सैफू.

1 comments:

Unknown July 2, 2009 at 3:58 PM  

बहुत बड़िया मज़ा आ गया।

यही है- 'मस्ती है मसालो कि दिल्ली,गली है दिवानों कि दिल्ली।"

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