छत्ता लाल मिया " जिम "

ये एक लोकल जिम है जिसकी बनावट कुछ खास नहीं है। पुरानी दिल्ली में ऐसे कई जिम गलियों-चौराहों पर चलते हैं जो अपनी बनावट से ज्यादा उसमें एक्सर्साएज़ कर रहे बन्दों पर गोर करते हैं वैसे यहां के आस पास के सभी जिम 60-70 गज की लम्बाई-चौड़ाई में ही बने हुए हैं जिसमें 100 से 150 बन्दे रोज़ के आते हैं, बाकाएदा उनकी रजिस्टर में एंटरी होती है और महीना आते ही याद दिला दिया जाता है कि
"भाइ आपका महिना हो चुका है" !
जिम अकसर दो टाइमिंग में चलते हैं सुबह 6 से 11 और शाम 5 से 10, यहां लड़कों में जिम का इतना शौक़ हैं कि सुबह-शाम ये दोनों टाइम ही भरा हुआ मिलता है।

यहां का अपना ही एक माहौल होता है जो हमें बाहर की एक समझ देता है कि लोग अब लोगों को कैसा देखना चाहते हैं।
मैं अपने आप में कैसा दिखता हूं और क्या बनना चाहता हूं? ये सवाल अपने आने वाले कल को लेकर ही होता है पर सिर्फ दिखावे में जो दिखता है उसके लिए। कुछ बनने से पहले हम उस दुनियां की कल्पना में खोये रहते हैं जो हमको उस बहाव में तैरने का एहसास देता है।

दोस्तों के बीच खड़े होने का तरीका और सड़क या बाज़ार में घुमने के स्टाइल की एक हवा सी गुज़रती है दिमाग में जिसके झोके हमको जिम से बांधे रखती है। फिर ख्याल आता है कि आप उस जगह में अकेले नहीं हो वहां आप जैसे शुरूआती बहुत हैं, जो अपने से और उस जगह से एक दिलचस्पी से जुड़े हैं।

जिम की बनावट और यहां की सजावट हमको एक ऐसे आकर्षण की ओर ले जाता है जो आप चाहते हो। इसका मैन मुद्दा है अपकी चाहत को समेट कर लाना और उत्साहित करना।
फिल्मी हीरो के फोटो लगाना, सलमान खान बिना शर्ट के, जोहन इबराहम की चेस्ट, शाहरूख के सिक्स पैक, उदय चौपड़ा के डोले और बाक़ी होलीवूड की फोटो, आर-नोल्ड वगैरह...

इन सब शख्सियतों को देखने पर देखने वाले को क्या उत्सुकता मिलती है ये समझ हर जिम के पास होती है वो अच्छे से अच्छा फोटो लगाता है, क्योंकि ये सब शख्सियतें ही उसके जिम का आकर्षण हैं, इतना सब देखने और अपने साथ एक्सर्साइज़ कर रहे छोटे-बड़ों से इतना तो पता चल ही जाता है कि शुरूआत क्या है और आगे क्या होगा।

बहुत से ऐसे लोग भी मिलते हैं जो हमको इसका अन्त समझाते हैं कोई रोककर तो कोई सलाह मशवरे में। इस जगह आपसी बातचीत का एक अलग ही रोमांच है जो बाकी सब जगहों से अलग है
जिसमें हमउम्र होने की वजह से अपनी बात को कही भी रखने में कोई झिझक नहीं होती, जिसमें "धिरे से बोल"
ये लाइन कहीं खोई सी लगती है।

जिम में नए चहरों को देखकर लगता है कि इनके भी कई सपने होंगे इस जगह से जुड़ी कितनी ही उम्मीदें और बातें होंगी, जिसको पूरा करने की आस में ये या तो सफल हो जाएगें या फिर कुछ टाइम बाद एक ऐसा समय अएगा कि ये भी मेरी तरह जिम आना छोड़ कर, उसके सपनों और यादों में ही घूमते रहेगें।



सैफू.

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