12:45 चाय की दुकान...

चार लोग दो-दो के ग्रुप में आमने-सामने बैठे हैं लकड़ी की टेबल पर। उसके ऊपर का कलर चाय वाले ने अपने पोछे के कपड़े में सोख लिया है।
पूरे भरे हुए चार गिलास पानी उनके स्वागत पर उन्हें दिये गए हैं। चारों 35 से 40 तक की उम्र तक के होंगे। सबने सर्दियों के मुताबिक गर्म कपड़े पहन रखे हैं। उनमें से एक के बाल अनुभव की रेंज में आकर पक चुके हैं। बातों का सिलसिला उनके स्वागत से पहले ही श्री गणेश हो चुका है।

पहला आदमी : (बालों का रंग सफ़ेद होने के हिसाब से सबका पंच लगा रहा है) थोड़े गम्भीर स्वर में बोला, "आज जुनेद का एक्सीडेंट हो गया।"

दूसरा आदमी : (अपनी पतली काया और काली चमड़ी के साथ)
चौंकते हुए पूछा, "कब?”

पहला आदमी : हल्के स्वार में बोला। "आज सुबह।"
(बोलने का तरीका और चहरे के भाव से लग रहा था कि जैसे किसी मछुआरे की नौका सम्रुद्र में डूब रही हो और वो बेचारा दुखी किनारे से सब देख रहा हो)

दूसरा आदमी : "वो कल ही रास्ते में मुझसे दुआ-सलाम करता जा रहा था।"
(यह उस मछुआरे को सहानुभूति देकर दुख की छाया से बाहर निकालने की कोशिश में लग रहा है।)

पहला आदमी : "ट्रक के साथ एक्सीडेंट हुआ है, बाईक पर था। अभी तो निकलवाई थी उसने। मैं तो उसे देख भी
नहीं पाया"
(मानो जैसे पूरा दृष्य उसकी आँखों के सामने फिर रिवाइन्ड हो कर आ गया हो)

टककक... चाय के गिलास टेबल पर आ गये और वो भी अपनी चिंतन से बाहर आ गये। थोड़ी देर सब शांत रहे मानों जैसे मोन व्रत हो और फिर चाय पीने लगे। माहौल पता नहीं कहाँ गुम था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि "मैं कहां हुँ?“



मनोज.

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