देखने में सब बाज़ार लगते है।

शोर-गुल में भी नज़ारे खुशगवार लगते हैं
भीड़ में खड़े आगे बड़ने के इंतज़ार में लम्हें बे-इंतज़ार लगते हैं।
कोई इधर झाके, कोई उधर झाके
देखने में सब बाज़ार लगते हैं।

चीज़े तितर-बितर है, लोग चलने में मशरूफ लगते हैं
कदम ना बड़े आगे तो वो बातों में लगते हैं।
निकल पड़े हैं सब घरों से, सजने को बेकरार लगते हैं।
देखने में सब बाज़ार लगते हैं।

गलियां बन गई हैं छटने के रास्ते
सीधी सड़क पर सब चलते से लगते हैं।
आवाज़े बन गई हैं रुकने के बहाने, आपस में सब बतियाते से लगते हैं
देखने में सब बाज़ार से लगते हैं।

रह गया हैं कोई मंज़र पुराना
ठिकानों की सब तलाश में लगते हैं
बेफिकरी में घुसते जा रहे हैं सब, एसे में सब बेकार लगते हैं
देखने में सब बाज़ार लगते हैं।

कहीं खान-पान का मेला तो खरीदारी का ज़ोर
सब एक-दूसरे की ज़रूरत सी लगते हैं।
ना हो ज़ोर किसी पर, तो वो घूमने में लगते हैं
देखने में सब बाज़ार लगते हैं।

जाने, अंजाने रिश्तों को लोग अपना बनाने
क्यूँ निकल पड़ते हैं
सब एक-दूसरे में भूले-बिसरे से लगते हैं
देखने में सब बाज़ार लगते हैं।

पकड़कर हाथ किसी का रिश्ते की नई शुरूआत में दिखते हैं
मान जाता है कोई तो बातों की पहल में लगते हैं
देखने में सब बाज़ार लगते हैं।

कैसे कहूं मैं भीड़ इसको
ऊपर से देखने का धोका भी हो सकता है
उतर कर बाज़ार में क्या कह सकता हूँ मैं
देखने में सब बाज़ार लगते हैं?


सैफू.

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