पुरानी दिल्ली की छोटी-बड़ी मंडलियों को समेट कर अपनी पहचान को पक्का करती ये ठिऐ नुमा दुकान मीना बाज़ार की सीढ़ियों पर एक ऐसा माहौल तैयार करती है जिसमे एक को देख एक मस्ती मज़ाक, जोरा-जोरी, लड़ाई-झगड़े से माहौल को भारी-भरकम बनाऐ रखते है। जो देखने-सुनने, उठने-बेठने मे बड़ी ही मज़ेदार जगह लगती है,
पर ये मज़ेदारी का एहसास कहां से आता है?
क्या जिस माहौल मे हमारा उठना-बेठना नही होता वो मज़ेदार या अदभुत होता है?
या हम ही से बनी जगह का एहसास जगह को खास बना देता है?
लोगों की शिरकत और एक ऐसे टाईम में दुकान का चलना जिस टाईम में लोग ढूढ़ते है ऐसी जगहों को जिसमे बैठ रात कट जाऐ, जिसमे रात का अंधेरा मन को सकून दे।
अलग-अलग छवियों, माहौलों और बातचीत से बनाऐ रखती है ये जगह अपने आप को दूसरों से अलग।
सैफू.
1 comments:
क्या जिस माहौल मे हमारा उठना-बेठना नही होता वो मज़ेदार या अदभुत होता है?
या हम ही से बनी जगह का एहसास जगह को खास बना देता है? सही कहा आपने ..तभी दिल अपने सुन्दर अतीत को भूल नहीं पाता है ..
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