ढेरो गड्डे

वो पल जो वक्त की रफतार को पकड़ने की कोशिश में उसे तेज़ कर खो बेठता है अपने अतित को। तलाश जो अपनी दिनचर्या में खुद की मैं गाथा को कही अंधियारे कमरे में ओझल करती जाती है। मगर हम फिर भी अपनी वो खुदाई खत्म नही करते इस उम्मीद मे की हो सकता है जीत जाऊ ? कही ना कही उस अनमोल खज़ाने की तलाश में लगे रहते है और ढेरो गड्डे खोदते चले जाते है अपने सफर को इतिहासिक बानाने की कोशिश में।

एसा लगता है कि एक चिरग की रोशनी दूर से सब साफ दिखाने में सब मटमेला करती जा रही है । उस में भी आँखे तलाश रही है अपनी दूरी के सफर को जो कही छोटा होने के बावज़ूद भी बहूत लम्बा लग रहा है ।

ना जाने कितनी परछाईयो को पार करना पड़ता है ।और कितनी अनदेखी अफवाऔ को मानना पड़ता है । क्योकि सफर हर बार मिलता है एक नई छवी के साथ जो उसे छिलती नोचती और पी जाती । पर पीना भी अधुरा होता क्योकि कुछ ना कुछ झुटन तो बच ही जाता है।वो ही झुटन किसी मेजिक बॉक्स की तरहा फिर भर जाता जो परोसा जाता किसी नए के सामने अपने नए स्वाद के साथ। फिर क्या ? लग जाते है इसे एतिहासिक बनाने में। सब कुछ ओखली में ड़ाल कुटने लगते है एक नए मिक्शचर की उम्मीद के लिए।

फिर भी याद आता है अपनी दुरीयो का नापा वक्त जो अपने बने ढाचो में कही छिपा हमे ही तकता रहता है। वो दिवार पर लगी घड़ी जो अपनी दूरी को नापने के लिए सब गिनती जाती है ओर अपनी धड़कन से अपने होने की मोज़ूदगी का एहसास दिलाती। और कहती कितने दिन हुए । चलो आज फिर साथ मिलकर अपनी बातो में मुझे खोने दो ।

वो चाय के खाली गिलास आज भी इसी उम्मीद में रखे दिखाई देते है कि आज तो कोई मण्डली हमारे साथ अपने सफर को बाँटे और हमारी गरमाई में इस गर्म माहोल में मिठास मिलाए। पर वो मिलना भी उसे पता है बटना ही था तभी खामोश होकर उन बिखरे दानो को बस देखने का ही काम करते। आज वो सफर मे तय हुआ वक्त धुंधला है या गायब पता नही। पर कुछ है जिसकी उम्मीद है।

पता नही क्यो हम अपनो से ही कटने लगते है। अगर पुछो तो कभी समय नही मिलता कहते है या काम में व्यस्त है कहकर अपना रास्ता नाप लेते है सफर के रास्तो में उन को धुंधला करते चले जाते है । फिर भी तैयार रहता है अपना एतिहासिक पन्ना हर किसी को सुनाने के लिये ।

कभी-कभी हम खुद को इतना ज़ाहिर कर देते है कि किसी ओर की मोज़ूदगी भी हमे फीकी सी लगती है। फिर निकलते है हम अपने सफर की तलाश में। वो ही सफर हमारे लिए एक सवाल बना रहता है। कि किस सफर को हम तलाश रहे है ? वो सफर क्या है- जो हमारी रोजर्मरा की जिन्दगी में अपने होने की छाप छोड़ जाए और आए दिन अपने होने को हमारे लफ़्जो के साथ हमारे अपनो में बोंते
मनोज

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