माफ़ी चाहता हूँ दोस्तों इतने लम्बे समय तक आपसे दूर रहने के लिए.
इसकी एक ख़ास वजह है मैं उ.प में एक प्रोजेक्ट से जुदा हुआ हूँ जिसके लिए मुझे यही पर अपना समय देना पड़ता है, यहाँ पर मैं खुद की कोशिश से एक लैब बना रहा हूँ जिसमे लोकल लोगो की शिरकत से ही मैं जगह की बसावट में उतर सकता हूँ,
यंग राईटरस के साथ काम करना और उनकी उत्तेजनाओ को संभवता के पायेदान तक लाना मेरा काम है जिससे की वो अपने कल में आज के इस समय को दोहरा सके उनकी रचनाये उनको एक पहचान दे सके... कोशिश है समय को दोहराने की, बनने से बनाने तक को सोचने की वो ख़ास जगह जहा लड़के-लडकिया खुद से खेल पाए, सोच पाए उस खेलने को, लिख पाए उस सोचने को और दिखा पाए अपने लिखे हुए को समाज और शेहेर की घिच-पिच करती भीड़ में.
ये एक कोशिश है अपने साथ भी और जगह के साथ भी कि क्या कोई एसी जगह अपने रंग में लोगो को रंग सकती है ?
क्या सपनो को दीवार पर सजाया जा सकता है ?
क्या कल्पनाओ को बाज़ार में सुनाया जा सकता है ?
क्या खुद कि नज़र से देखे उन लम्हों को ओरों कि नजरों का हिस्सा बनाया जा सकता है ?
एसे कई सारे सुझाव और सवाल दिमाग में पहरे देते रहते है लेकिन उनको हकिकत की शक्ल देने में एक लम्बा समय चाहिए वो लम्बा समय बार बार ये एहसास दिलाता रहेगा की वक़्त के बदलते काटो के साथ अगर खुद को बदलने की ज़िद भी जुड़ जाये तो उन बदलते पलों में, मैं खुद को भी पाउँगा . और समय यही चाहता है की सबको उसकी रफ़्तार से चलना चाहिए जो छूट गया वो कल वापस नहीं आएगा और अगले कल में खुद को देखना आपको काफी पीछे छोड़ देता है.
लोग कहते है कछुए की चाल में आलस कम होता है तेज़ भागने से आप कही जाकर रुक जाते हो जहा जाकर आप पीछे छूटने लगते हो...
ये सोचने वाली बात है की जीवन रचना की रफ़्तार क्या होनी चाहिए ?
मुझे लगता है कि समय हर घडी हमे ये महसूस करता है कि हमे किस रफ़्तार से चलना चाहिए, हर मोड़ पर संभलने के संकेत देता नज़र आता है समय.
वक़्त-बे-वक़्त बनते किस्सों में आपको शामिल होने के न्योते देता है तो कभी पिछले किस्सों से मिली नसीहतो को सामने ले आता है और रफ़्तार पर असर छोड़ता है.
ये एक धारणा हम सबके दीमाग में रहती है शायद आपकी धारणा कुछ और हो लेकिन मेरी सोच और मेरे ख्यालात यही कहते है की हमे वक़्त की रफ़्तार से कुछ सीखना चाहिए उसकी गति धीमी ज़रूर है मगर बदलते समय में वो खुद को तरह-तरह से ढाल लेता है - जब लोग कहते है - "यार आज दिन का पता ही नहीं चला, कब खत्म हो गया" या "यार इतनी देर हो गई बेठे-बेठे लेकिन समय है कि कट ही नहीं रहा".
ये समय के अपने कुछ ढांचे है जो हमारे साथ तरह-तरह से जीते है लेकिन फिर भी लोग उसकी गति और बदलते रूप से कुछ सीच नहीं पाते, अपने बड़े-बुजरूगो से कहावत के नाम पर सीख का पाठ ज़रूर रट लेते है लेकिन समय के साथ चलना नहीं सीख पाते . शायद में भी आज ही इस गति को सोच रहा हूँ आज से पहले मैं भी इस रफ़्तार से ओझल था जो रोज़ मेरे साथ जीता है में उसी को नहीं सोच पा रहा था.
आगे से हम सब समय कि रफ़्तार को सोचेंगे और उसके साथ आगे बदने कि नीति को अपने जीवन में अपनाएंगे
हमेशा खुद को आगे के लिए तैयार करना है, हर बार आगे बड़ने को सोचना है जीवन भी आगे बाद रहा है समय भी आगे बाद रहा है तो हम क्यों ठहराव में जीए ये हमारी ज़िद होनी चाहिए तभी एक नया सपना पूरा होता दिखाई देगा ----
सैफू .
Saturday, July 31, 2010
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