गली के बाहर लगे चार लड़कों के मजमे ने अपनी आपसी बातों से आस-पास को अपनी गूंज से महका रखा है, कोई उनको मस्त तो कोई उन्हें छिछोरा बड़बड़ाता हुआ निकल जाता। पर वो चारों अपनी ही मस्ती से माहौल मे वो गर्माई बनाऐ रखते जिससे बातों को सुनाने और सुनने का मज़ा बना रहता।
यहां हर गली, हर नुक्कड़ ऐसी महफिलों का भंडार लिए हुऐ है और हर एक महफिल अलग माहौल और बातें।
कहीं किसी दुकान के बाहर तो कहीं किसी बंद दुकान के चबूतरे पर तो कहीं इन चारों की तरह कही किसी गली के नुक्कड़ पर। ये सब यहीं आस-पास के यार-दोस्त हैं जो आस-पास की किसी भी बैठक पर बैठकर बातें बतियाते हैं।
जैसे किसी तख्त, खाली खड़ा रिक्शा, रेड़ी या चबूतरा। ये रोज़ नई बातें और रोज़ एक नई महफिल को अलग ढ़ंग से सजाते हैं।
कभी 4 तो कभी 6 तो कभी पूरी टोली पर आज ये चारों मस्ती भरे अंदाज़ मे एक दूसरे से मिले हैं।
ना मैं इनका नाम जानता हूं और ना ये जानता हू कि ये रहते कहां हैं ? पर इनकी आपसी बातों की गूंज ने मुझे इनकी ओर खैंच लिया
(सोचता हूं काश मेरे भी कई दोस्त होते और मैं भी इनकी तरह बने एसे मजमों में शरीक हो पाता)
ये चारों एक दूसरे से हंस-हंसकर बातें करते, कभी एक के हाथ बड़ाने पर दूसरा उसके हाथ बड़ाने को समझ उसे ताली देता तो कभी आपस मे ही एक-दूसरे तो उंगली दिखा कर हंसते।
ये इनकी आपसी समझ है जो इन्हें एक दूसरे से जोड़े रखती है, इनका रोज़ कोई नई जगह को तलाशना और मिलना कई संदर्भो मे बहा ले जाता है। एक दूसरे को जान पाना और मिज़ाज़ को समझना रोज़ नई कहानी को इनकी रोज़मर्रा से खींच लेता है।
सुबह से शाम तक की रुटीन को अपनी रात की मण्डली मे उतारना रोज़ का काम बन जाता हैं। ये चारों भी जब एक दूसरे की तरफ इशारा करके हंसते है तो मुझे इनका साथ बिताया हुआ पल दिखाई देता है। जब ये हवा मे बातें करके हंसते है तो मुझे इनसे जुड़ी कई ज़िन्दगियाँ नज़र आती हैं और जब ये हंसते-हंसते चुप्पी का माहौल साध लेते है तो मुझे इनके बीच का संवाद नज़र आता है कि ये महफिलें चीज़ो, माहौलों, शख्सों को सिर्फ़ हल्के मे ही नही गहराइ से भी लेना जानते है, जो इनकी जिंदगी में आते हैं, मिलते हैं और कुछ पल बाद सिमट कर खो जाते हैं।
मैं रोज़ अपनी गली के बाहर इन्हे कहीं खड़ा तो कही बैठा देखता हूं और ये रोज़ इसी जगह को चुनते है शायद कुछ समय के लिए उसके बाद या उससे पहले ये इस रात मे ना जाने कहां नज़रों मे आते होंगे।
सैफू.
रात मे ना जाने कहां...
Wednesday, July 15, 2009
Labels: महफिलों के बीच से...
4 comments:
hi saifu...
apka blog bhut acha laga.
shukriya moni ji.... me ummid karta hun ki aapse mujhe achcha samvaad karne ka moka milega.
dhoondate reh jaaoge NUKKAD,CHABUTRAA AUR MEHFIL.
बहुत अच्छा लिखा है आपने!
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