जगह का मालिक

::: भाई आलू के नाम से जाना जाता है पता नही यह उनका नाम है या उनके मोटे शरीर के कारण रख दिया गया है। वो हमेशा नहा-धोकर, सफेद रंग के कपड़ों में अपने कैरम क्लब की नियमित रोज़मर्रा में आने वाले लोगों का स्वागत् करते रहते हैं। उनका यह मेज़बान का काम इस घूमती-फिरती पुरानी दिल्ली में दोपहर के 4 बज़े से रात के 1 बज़े तक चलता है।

जिसके बीच उनका खाना-पीना और सोना सभी उस जगह में होता। इस बीच लोग आते, खेलते और महफिलें जमाते जिसमें भाई आलू भी शरिक होते।
पर भाई आलू को कैरम खेलना नही आता उनका तो शौक़ पंतग उड़ाने का है और उनका वो शौक हमे कैरम क़्लब की दिवारों पर दिखाता है। उन्होने अपने क़्लब की क्रिम सफेदी के ऊपर कई तरह की पतंगें लगा रखी हैं जो उनके बीते समय को कहीं रोकी सी लगती हैं।
उन्हें अपना कैरम क़्लब साफ रखना पसन्द है, पर वो उन्हे भी मना नहीं करते जो अपनी पान की पीकों से दिवारों को गन्दा करते हैं। उनके लिए उन्होने कुछ छोटी बाल्टीयां लगा दी हैं जिसमें वो थूकते और पिचकारियां मारते नज़र आते हैं।
इसी तरह के सारे इन्तेज़ाम भाई आलू ही करते है। जगह उनकी ज़्यादा बड़ी तो नहीं पर उन्होने अपने क़्लब में दो कैरम लगा रखें हैं जिसमें एक बार में आठ लोग खेल सकते हैं। किसी को परेशान किये बीना ही सब अपनी मर्जी का खेल, खेल सकते हैं, हसना, चीखना-चिल्लाना जैसी अव़ाज़ों से वहां की जैसे शान सी बड़ती हो पर अपनी अंदरूनी छवि को हमेशा बाहर से दूर रखती है ये जगह। अपने अन्दर जमी चीज़ों को पिघलनें से पहले ही खत्म कर देती है।


मनोज

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