मनचला-मनचला बोलकर वो मुझसे मुह मोड़ लेती है,
फिर क्यों रात को फोन पर वो मुझे आई लव यू कहती है।
आवारा हूं मैं, बोलकर कभी तो वो मुझे जगहों में कोसती है,
न जाने फिर क्यों रात को फोन पर वो मुझे आई लव यू कहती है।
जब गलियों मे रोककर बोलता हूँ उसे जान, जानू, सुनो तो,
तब कोई जवाब नहीं देती,
पर क्यों रात को फोन पर "जान बोलोना न मुझे" वो कहती है।
तुम कितनी कोमल हो, अच्छी हो, खूबसूरत हो रोज़ कहने से झिझकता नहीं मैं,
लेकिन हर बार फोन करने के बाद ही क्यों ये बातें याद आती हैं।
कई चहरों से प्यार करता हूं मैं, रोज़ एक नया चहरा ढूढ़ता हूँ,
उसका चहरा तब सामने आ जाता है जब फोन पर मिस-कोल देती है।
कितना प्यार करते हो मुझसे?, ऐसे सवालों में मुझे घेरे रखती है,
क्यों वो मुझे फोन पर बचकानेपन में आई लव यू कहने पर मजबूर कर देती है।
कितनी बार सोचता हूँ कुछ खिला-पिला दूंगा तो प्यार बढ़ जऐगा,
कहीं घुमा-फिरा दूंगा तो प्यार बढ़ जाऐगा,
पर जब भी मैं गली से गुज़रते उसके कदमों मे अपने कदम मिलाता हूँ,
तो वो "कोई देख लेगा" ये कहकर गली ही बदल लेती है।
कभी खिड़की से कभी छत पर वो रोज़ मिलने आती है, इशारा फोन का बनाती है,
रात को फोन पर कहता हूँ "कहीं घूमने चलो" तो बहाना परेशानी बताती है।
दो दिन बात न करो तो फोन पर बड़ा चिल्लती है, कहती है
"पता है कितनी परेशान हो गई थी मैं"
मैं बातों-बातों में कहता हूँ रिचार्ज करवा दूं क्या तुम्हारे फोन का,
तो जवाब हाँ मे बताती है।
कभी दुपट्टे में तो कभी बुरखे मे जब वो बाज़ार मे निकलती है,
उसकी नक़ाबी आँखों मे, मैं उसे पहचान लेता हूँ,
मैं उसके इतने करीब कैसे ये देखकर वो सर्रा सी जाती हैं।
मैं रात को फोन पर पूछता हूँ "अपने बारे में भी कुछ बताओ"
तो वो घर के बाद मुझसे प्यार करती है, बड़ा ही शर्माकर बताती है।
एक घंटा, दो घंटे, कई घंटे बातचीत का सिलसिला चलता रहता,
फोन थका, मैं थका क्या तुम थक गई हो, "सोना कब है?"
तो वो टाईम सुबह होने तक बताती है।
कई बार उसका हाथ पकड़ा तो वो छुड़ाकर भाग जाती है,
सीढ़ीयों पर उसे जकड़ा तो वो सिमट सी जाती है,
जब रात को उससे फोन पर पूछता हूँ "कैसा महसूस हुआ था तुम्हें?"
तो वो उसी को प्यार बताती है।
उस प्यार का क्या फाएदा जिसमे मिलन न हो, एक दूसरे से मिलने वाली सर्रसराहट न हो,
मेरी इस बात पर न जाने क्यों बैशर्म हूँ मैं जताती है।
डरती है मिलने से, करीब आने से, कहती है तुम डाकू हो गांव लुट जाऐगा,
फिर सज-सवर कर क्यों निकलती हो जब गांव की फिक्र है,
तो वो दूर रहने मे ही भलाई बताती है।
पल-भर में चहरे के बदलते भावों से वो ये एहसास कराती है
"मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ"
फिर क्यों रात को फोन पर वो इन बातों को सिर्फ दिखावा बताती है।
मैं सोचता हूं कि ये मेरी सेटिंग है, वो कहती है तुम मेरे जानू हो,
मैं पूछता हूँ शादी करोगी मुझसे ?
तो क्यों वो फोन का "ऑफ बटन" दबाती है।
फिर क्यों रात को फोन पर वो मुझे आई लव यू कहती है।
आवारा हूं मैं, बोलकर कभी तो वो मुझे जगहों में कोसती है,
न जाने फिर क्यों रात को फोन पर वो मुझे आई लव यू कहती है।
जब गलियों मे रोककर बोलता हूँ उसे जान, जानू, सुनो तो,
तब कोई जवाब नहीं देती,
पर क्यों रात को फोन पर "जान बोलोना न मुझे" वो कहती है।
तुम कितनी कोमल हो, अच्छी हो, खूबसूरत हो रोज़ कहने से झिझकता नहीं मैं,
लेकिन हर बार फोन करने के बाद ही क्यों ये बातें याद आती हैं।
कई चहरों से प्यार करता हूं मैं, रोज़ एक नया चहरा ढूढ़ता हूँ,
उसका चहरा तब सामने आ जाता है जब फोन पर मिस-कोल देती है।
कितना प्यार करते हो मुझसे?, ऐसे सवालों में मुझे घेरे रखती है,
क्यों वो मुझे फोन पर बचकानेपन में आई लव यू कहने पर मजबूर कर देती है।
कितनी बार सोचता हूँ कुछ खिला-पिला दूंगा तो प्यार बढ़ जऐगा,
कहीं घुमा-फिरा दूंगा तो प्यार बढ़ जाऐगा,
पर जब भी मैं गली से गुज़रते उसके कदमों मे अपने कदम मिलाता हूँ,
तो वो "कोई देख लेगा" ये कहकर गली ही बदल लेती है।
कभी खिड़की से कभी छत पर वो रोज़ मिलने आती है, इशारा फोन का बनाती है,
रात को फोन पर कहता हूँ "कहीं घूमने चलो" तो बहाना परेशानी बताती है।
दो दिन बात न करो तो फोन पर बड़ा चिल्लती है, कहती है
"पता है कितनी परेशान हो गई थी मैं"
मैं बातों-बातों में कहता हूँ रिचार्ज करवा दूं क्या तुम्हारे फोन का,
तो जवाब हाँ मे बताती है।
कभी दुपट्टे में तो कभी बुरखे मे जब वो बाज़ार मे निकलती है,
उसकी नक़ाबी आँखों मे, मैं उसे पहचान लेता हूँ,
मैं उसके इतने करीब कैसे ये देखकर वो सर्रा सी जाती हैं।
मैं रात को फोन पर पूछता हूँ "अपने बारे में भी कुछ बताओ"
तो वो घर के बाद मुझसे प्यार करती है, बड़ा ही शर्माकर बताती है।
एक घंटा, दो घंटे, कई घंटे बातचीत का सिलसिला चलता रहता,
फोन थका, मैं थका क्या तुम थक गई हो, "सोना कब है?"
तो वो टाईम सुबह होने तक बताती है।
कई बार उसका हाथ पकड़ा तो वो छुड़ाकर भाग जाती है,
सीढ़ीयों पर उसे जकड़ा तो वो सिमट सी जाती है,
जब रात को उससे फोन पर पूछता हूँ "कैसा महसूस हुआ था तुम्हें?"
तो वो उसी को प्यार बताती है।
उस प्यार का क्या फाएदा जिसमे मिलन न हो, एक दूसरे से मिलने वाली सर्रसराहट न हो,
मेरी इस बात पर न जाने क्यों बैशर्म हूँ मैं जताती है।
डरती है मिलने से, करीब आने से, कहती है तुम डाकू हो गांव लुट जाऐगा,
फिर सज-सवर कर क्यों निकलती हो जब गांव की फिक्र है,
तो वो दूर रहने मे ही भलाई बताती है।
पल-भर में चहरे के बदलते भावों से वो ये एहसास कराती है
"मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ"
फिर क्यों रात को फोन पर वो इन बातों को सिर्फ दिखावा बताती है।
मैं सोचता हूं कि ये मेरी सेटिंग है, वो कहती है तुम मेरे जानू हो,
मैं पूछता हूँ शादी करोगी मुझसे ?
तो क्यों वो फोन का "ऑफ बटन" दबाती है।
सैफू.
3 comments:
pyaar ek khvaab hai shaadi hakikat hai.
khvaab main rehne ko dunia tarasti hai.
jannat ki hakikat se waakif hain sabhi.
sach ke saamne se sabhi isiliyedartehain.
jalli-kalam-se
angrezi-vichar.blogspot.com
jhallevichar.blogspot.com
Nice poem
Sahab vo apse pyaar nahi karti....
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