साल का एक अकेला एसा महीना जो चमका देता है पुरानी दिल्ली को "रमज़ान-ऐ-मुबारक" रमज़ान की रोनक को अगर महसूस करना हो तो या उसे खुद में शामिल करके मज़े लेना हो तो पुरानी दिल्ली से बढ़ियां जगह और कोई हो ही नही सकती। चकाचौन और भीड़-भाड़ वाला माहौल पुरानी दिल्ली को देखने लायक बना देता है "कहते हैना- हीरे में भी खूबसूरती तभि आती है जब उसे निखारा जाता है, उसे किसी रूप में जड़ा जाता है।
लोगों का मिलना-जुलना, 24 घन्टों की चहल-पहल और बाज़ार- देखने और घूमने का मज़ा बनाए रखते हैं।
घूमने का मज़ा यहां हर कोई उठाता है घर से अगर अफतार का सामान लेने भी निकलना होता है तो वो मज़ा बरकरार रहता है। इधर-उधर ताकना चलता रहता है यहां माहौल दोनो पार्टी के लिए एक जैसा है, लड़कियां भी बहुत मज़े लेती हैं बाज़ार के- ये पता होते हुए भी कि बाज़ार में छेड़छाड़ लाज़मी सी बात है सज-धज के निकालती हैं।
ताका-ताक़ी बराबरी की होती है कुछ बे-खबर होते हैं तो कुछ ज्ञानी इन मामलों में पर इस बीच बाज़ार धड़ाके से खरीदारी में जुटा होता है।
हर किसी को जल्दी है ईद की तैयारी की तरह-तरह के सूट, पेंट, शर्ट-टी-शर्ट, बेल्ट, बुंदे, चूड़ियाँ... ये-वो अगड़म-सगड़म तरह-तरह की तैयारियों से भरा बाज़ार, अपनी और खरीदारों की ज़रुरतों से बना बाज़ार, इधर-उधर की तरह-तरह की बातों में लगा बाज़ार कभी त्योहारों तो कभी सण्डे को सजता बाज़ार कभी उसने बोला चलो बाज़ार कभी मैंने बोला चलें बाज़ार...
खैर ये तो माहौल की बात है रोनक इसकी खासियत है और भीड़-भाड़ एक आम बात लेकिन लोगों का सड़कों पर रातों का गुज़ारना बाज़ार को और होसला देता है देर रात तक सजने का। बरसों से चला आ रहा है ये रिवाज़ कि यहां रोनक को, आवाज़ों को, चहल-पहल को, मिलने-जुलने को ही ये जगह अपनी खासियत मानती है।
और आज भी यहां के लोग उसी अंदाज़ में रमज़ान की रातों को गुज़ारतें है जैसा उन्होने देखा उसी को अपनाया। ज्यादातर लड़के रातों को मस्ती करते है, कोई घूम-घूमकर तो कोई मंडली बना कर जिसमे यार दोस्तों की हसी मज़ाक से आस-पास मे जान रहती है।
जामा मस्जिद सजता है उनके लिए जो आते हैं वहां ये सोचकर चलो चलते हैं जामा मस्जिद घूमने अभी वक़्त है सेहरी में, अज़ान की गूंज बहुत खास है यहां के लिए- अज़ान होते ही कुछ घरों से कुछ सड़कों से लड़के आदमी सिमट जाते हैं मस्जिदों में, सड़कों पर बचतें हैं बस बे-नमाज़ी या औरतें जो उनके लिए शोपिंग का सबसे अच्छा टाइम है। पर ये सकून सिर्फ कुछ लम्हों तक ही रहता है उसके बाद फिर एक भीड़ बाहर आती है और माहौल की वो आवाज़ें, चहल-पहल, आवारग़ी जिसे हम रोनक कहते है वो रचा जाता है।
सैफू.