ये बात तो अब रोज़ रात होते ही शुरू हो जाती है. कौन समझाए ? कौन कहे इनसे कि आस-पास बहु-बेटियों का घर है ?
यहाँ तो कोई कहने-सुनने सुनने वाला ही नहीं है, रोज़ाना मजमा लगवाना इस आदमी का काम बन गया है.
शीतल जी के घर के नीचे रोज़ पड़ोस के रमेश भाई पीकर हल्ला मचाते हैं, रत के ९ बजे नहीं के शीतल जी का अपने घर की गेलरी से इस तरह का बडबडाना शुरू हो जाता है.
रमेश भाई रोज़ एक ही बात बोल-बोलकर इलाका सर पर उठा लेते हैं- उनकी कोई एक बात नहीं सुनता लेकिन शीतल जी की बात को सुनने के लिए पूरा इलाका इकठ्ठा हो जाता है.
रमेश भाई --- तुम सब मुझे यहाँ से भागना चाहते हो , मैं यहाँ से कही नहीं जाने वाला...
शीतल जी --- जा अपने घर जा, कोई नहीं भगा रहा तुझे- अपने घर जा सोने दे हमे, हम रोज़ यहाँ तेरी गलियां सुनने नहीं बैठे है.
( वो रोज़ाना यही सोचती हैं कि वो न बोले, लेकिन अब उनको भी आदत सी हो गयी रमेश भाई की तरह रोज़ इलाके को अपनी आवाज़ सुनाने की )
रमेश भाई --- हाँ तो भगा दो मुझे, मरो मुझे, ये सब मरने के लिए तो आये है , मरो ....भगाओ
शीतल जी --- चला जा, जा- वरना ये सब ही मरेंगे, फजूल में गलियां मत बका कर यहाँ आकर, ये अपने घर जा कर किया कर, मैं भी तो देखू तेरी बीवी कैसे सुनती है तुझे ?
पूरा इलाका इनकी इस बातचीत को इतने ध्यान से सुनता है जैसे कोई फिल्म चल रही हो- वैसे ये नाईट शो सही टाईम पर ही तो शुरू होता है 9 से 12 .
इस भीड़ में आस-पास के वो सभी लड़के शामिल होतें हैं जिनका काम ही है रात की आवाजों को सुनना और अपनी खिल्लियों से माहोल में गूँज बनाये रखना जिससे की इनकी मोजूदगी का एहसास बना रहे उस जगह में. वो अपनी बैठक जान-बूझ कर ऐसी जगह बनाते है जहाँ से उनकी बातें और हरकतें इलाके के बीच पहुच सकें.
जब भी इस तरह की कोई बातचीत इलाके में भारी आवाज़ बनकर गूंजने लगती है तो आस-पास के घरों की गेलरियों में लड़कियों का आना होता है जिससे ऊपर-नीचे के बीच देखा-देखी का रिश्ता जोर पकड़ता है और इशारेबाज़ी, अपनी पसंद , दोस्तों के लिए भाभी चुनना एक तरह से एक अलग ही समझ बनता है इस माहोल को सोचने के लिए की इस दोरान वो क्या-क्या है जो चल रहा है होता है, लडाई सिर्फ हक और नाहक में फस कर रह जाती है उसके बीच लुक्का-छुप्पी का वो जो खेल है वो एक मोका बन जाता है लड़के-लड़कियों के लिए जिसके बार-बार बनने का इंतज़ार रहता है.
रमेश भाई पीने के बाद एक ही बात सोचते हैं की ये सब मुझे भागना चाहते है, मरना चाहते हैं. ऐसा इसलिए होता है की जब भी वो पीकर कालोनी में इंटर होते हैं तो वो सीधे अपने घर नहीं जाते बल्कि गालियाँ बकते-बकते बिल्डिंग के नीचे ही मंडराते रहते हैं. ऐसे हालातों में उनके दिमाग को कोई भी बात मिलना- हल्ला मचने का मुद्दा बन जाता है.
लड़के अकसर उनसे ये कह देतें हैं कि --- रमेश भाई तुम्हारा पत्ता तो साफ़ है ... ये सब मिलकर तुम्हे भागने कि साजिश कर रहे हैं .
बस ये सुनते है उनकी शराबी धुन शुरू, नशे की हालत में गिरते-पड़ते वो अपना रूप धारण कर इलाका सर पर उठाने का जिम्मा ले लेते हैं.
ऐसे में उनका चिल्लाना शुरू और शीतल जी का उन्हें समझाना शुरू, न वो समझते हैं और न ही कोई उन्हें समझा पता है बात यही पर आकर शुरू भी होती है और ख़त्म भी यही होती है कि--- तुम सब मुझे यहाँ से भगाना चाहते हो ....
saifu...