"खुद को अकेला समझना सरासर ना इंसाफी है"
ये लाईन मैंने अपने साथियों के साथ समझी, जब मैंने ये लाइन सुनी तो मुझे इसे समझने मे ज्यादा देर नही लगी क्योंकि इस लाइन को हम अपनी जीवन में कई कठिन प्ररिस्तिथियों में जीते हैं।
इस बात को समझने के बाद मैंने हमेशा इसे अपने आप से जोड़े रखा, क्योंकि ये लाइन मेरी आंरिक उर्जा मे एक खास तरह का बहाव पेदा कर देती है। जिससे मुझे कर जाने की क्षमता का एहसास होता है।
अकसर कुछ प्रसतिथियां इस कदर घैर लेती हैं कि हम खुद से एक बहस मे जुट जाते हैं और ऐसे हालात मे एक बात साफ साफ समझ आने लगती है कि जिस पर जितने संकट मंडराते हैं वो उतना ही सतर्क और आंतरिक उर्जा का धनी हो जाता है।
वो कहते हैना :- दूध का जला छाज भी फूक-फूक कर पीता है।
एसे मे खुद को समभालना भी मुझे अपनी आंतरिक उर्जा का बल लगता है। जिससे मुझे समस्याओं से लड़ने और उन्हें समझने का भरपूर दम मिल जाता है।
कई लोग समस्याओं के दौर मे प्रार्थना करते हैं और खुद को मजबूत करते हैं, प्रार्थना करने का मतलब है खुद को कमज़ोर समझना लेकिन अगर संकट से जूझा जाए तो हमारे अंदर की आंतरिक उर्जा का बल कई गुना बड़ जाता है।
जिसकी वजह से हमे डर नही लगता और डर ना लगने का मतलब है, हम खुद के दम से किसी भी और कैसी भी समस्याओं, चुनोतियों का सामना करने को तैयार हैं।
हालात शब्द से सभी का सामना होता है, किसी का खुशी में तो किसी का गम में, हालात हर किसी को खुद के होने का एहसास कराता रेहता है लेकिन हम उसे अकसर अपनी ज़ुबा पर तब लाते हैं जब हालात ही कुछ एसे हो- मतलब परेशानियों के समय में।
हमे मुकाम कब मिलता है ?
जब हम अपने अंदर की ताकत और जुझारुपन को सामने लाते है या बाहर लाते है।
इस बात को समझने का एक और नज़रिया हो सकता है- कि जीवन के लिए जो जद्दोजहद आदमी करता है वही हमारी आंतरिक उर्जा को मनोबल देता है।
और इसे हम प्रतिरोधक क्षमता भी कह सकते हैं जो जीवन के लिए किये गऐ संघर्ष से आती है।
जब किसी पर संकट आता है तो वो रास्ते तलाशता है।
शेर पीछे पड़ जाए तो हिरन भागने की कोशिश करता है और इसी तरह हम पर भी जब समस्याऐं आती हैं तो हम बचने की कोशिश करते है।
एसे हालात हमारी अंदरुनी चैतना को दिखाते हैं और जब संकट घैर लेते हैं तो हमारी चैतना ही हमें प्रस्तिथियों से लड़ने को उत्साहित करती है।
और इस बात को हम खुद से महसूस कर सकते हैं कि संकटों मे ही हमारी आंतरिक उर्जा पोषित होती है।