"लोगो की शिरकत"

पुरानी दिल्ली के कई कौने अपनी-अपनी खासियत से मशहूर हैं। और उनका मशहूर होना यूही नहीं बना वो बनना चला आ रहा है पीढ़ीयों से, लोगों की पसंद से वो पसंद जो जगह और लोगों के बीच के धागे मे गीठा लगाऐ हुऐ है।
जिसे खोलना या खींच कर तोड़ देना आसान नहीं है। सरकार ने ऐसी कई उम्मीदे लगाई हुई थी पुरानी दिल्ली को लेकर पर बड़े-बूड़ों का साथ और लोगों का जगह से एक खास रिश्ता हमेशा सरकार की उम्मीदों पर पानी फेरता आया है।
जामा मस्जिद की मरम्मत से लेकर बाज़ारों की रोनकों तक सरकार ने हाथ फैरना चाहा जिसे कुछ चीज़े धुंधली हो जाऐ लेकिन लोगो का जगह से रोज़ का जुड़ना और माहौल के बनने से बनाने की परिक्रिया मे रेहना सरकसर को पुरानी दिल्ली को छूने तक नहीं देता ।

सरकार चाहती है कि बदलती दिल्ली में पुरानी दिल्ली का भी वजूद बदले, चल रही पीढ़ी को नए नियमों के साथ जीना आ जाऐ गलियां बदल जाऐं, लोगों का बरताव बदल जाऐ जिसमे पुरानी दिल्ली भी बदलती दिल्ली का ही हिस्सा लगे यहां भी लोगो के साथ बदलाव चले ।
लेकिन हम इस पीढ़ी मे भी वैसे ही जीते है जैसे हमारे बड़ो मे पुरानी दिल्ली को जिया है वो मज़ा जो उन्हें सुनने मे आता है उनके मज़े के आगे अपना मज़ा कहीं फीका सा लगता है और उसी मज़े को और मज़ेदार करने की कोशिश मे लोग और जगह दोनों जीये चले जा रहे हैं मस्ती में।



सैफू.

3 comments:

jamos jhalla June 20, 2009 at 8:21 PM  

ARE HUZOOR MAANGNE SE JO MOUT MIL JAATEE KAUN JEETAA IS JAMAANE MAI.ISILIYE SARKAARON PAR BHAROSAA MAT KARO . UTH KHADE HO JAAO APNE AAS PAAS KO JODO AUR JITNAA HO SAKE KAR DAALO.TUMHE SUKOON MILEGAA.LOGON KO KHUSHIAUR SARKAARON KO IBRAT.

manoj June 22, 2009 at 2:12 PM  

kitne hi log aapni jindgi ko apna mankar hi jite chale aa rahe he . par wo jindgi jo ek badlab ke saat kitno ko badlegi wo bhi janna jaruri he. jagah ka bdlab logo ko chhukr aapni chhap chhodta hua chala jata he. jisme mahol or masti dono hi aapna patibimb badati jati he . maza aya aap ke badlaw ke bayre me padkar ...

mark rai June 25, 2009 at 5:13 PM  

kaaphi achchha laga aapke blog par aaker.....sach yah duniya aur lekhni shatranj ki vishaat hi to hai...sahi kahu maja aa gaya....

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