कोई पहचान

चप्पलों की घिसावट के साथ हम अपनी दूरीयों को नापते चले जाते है। नज़रों से नज़रों को मिलाते फिर चुराते अपने उस मुकाम को पाने की कोशिश में रहते हैं जो कभी हमारा था ही नही। फिर मिलते है समय के उन टाईम टेबल से जो एक निर्धारिता मे बंधा है।

अपनी ही तरह की आज़ादी को पाने की होड़ लोगों को कहीं से भी खेंच लाती है। लोग दूरीया नापकर अपने नेटवर्क को बड़ाने के लिए कही से भी भागे चले आते है इन अनमोल जगहों की तलाश में।

वो अपना समय उन लोगों के नाम कर देते हैं। जो चैलेंज की एक बनी हुई प्रक्रिया के साथ मिलते है। लोग चाकू की तेज़ धार लिए आपको हराने के तरीके को पैना करते और अपने गैम मे माहिर होने की बुनाई में लगे रहते है।
उस बुनाई की हर एक गाठ रोज़ एक नए मेम्बर की तलाश को चारों ओर फैला देती है।

कभी-कभी मंडलियों के बिगड़ने की बातों को भी यहां का मुद्दा बना लेते है "कहां गया तुम्हारा चौथा पार्टनर" "दिखाई नही दे रहा, काफी दिन हुए उसे देखे हुए" अगर वो सही है तो ठीक, नही तो उसके बारे में ही उस जगह में उसकी चर्चा होने लगती।
मुद्दा कुछ एसा होता जो लोगों को या तो सिरियस या फिर माज़ाकिया तौर पर ले जाता। बगल की सीटो पर बैठे लोग अपनी दूरीयों के तय किये हुए इतने समय से बने दायरों को फैलाने और बने नेटवर्क खत्म न हो जाए इसी डर में रहते हैं। और बुनते रहते है अपनी बुनाई को उस क्लब में।


मनोज...

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