" आर्कषण "

जो हर पल अलग-अलग रूप में उस जगह में बहता रहता है जो न सिर्फ़ मेरा है और न सिर्फ़ तुम्हारा...
वो अकर्षण है किसी की शुरूआत का, किसी की आदतों को बरदाश करने का, सुनकर अनसुना करने का और बार-बार भगाने के बाद भी रोज़ वहां लगने वाली लड़कों की टोलियों का।
यहां लोगों ने इन जगहों को अपने तरीके से देखने की आदत डाल ली है और बना लिया है वो नज़रियां जिसमे बोलने और सुनने वाले सिर्फ़ वो हैं जिनसे ये जगह पनपने के उस ताव में है।

इसमे सदा से अच्छे और बुरे की बहस रही है जिसमे कोई पास तो कोई फैल रहा है और पास फैल की भाषा में इन जगहों को उतारने वाले और कोइ नहीं इसी जगह के वो लोग होते हैं, जो इस जगह के आस-पास को सोच कर, लहज़े-तमीज़ को सोच कर, अपने-पराए की परख पर, नऐ-पुराने अड्डे की पहचान को मुद्दा बना कर और इलाके की शिकाएतों या फरमाइशों पर इस को बना या बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ते।

यहां हर तरीके के लोग आते हैं। कोई गुटखा खाता हुआ तो कभी-कभी पूरी दुकान में सिगरेट का धुआ ही छाया रहता है।
यहां गालियां भी बकी जाती हैं और गलियों को सहा भी जाता है और हर तरीके का मज़ाक भी किया जाना लाज़मी सी बात है। यहां गर्म खून के लोग भी बहुत आते है जिनके मुँह मे गुटखा, नाक से बीड़ी का धूआ और मन में हमेशा मारने-मरने की बातें भरी रहती हैं।

छोटी-छोटी बातों पर एक दूसरे की खिचाई भी और जुगलबंदी में अपनी बात से सामने वाले को चुप कराने की तरकीब भी, जिसमें एक पल के लिए भी ये नहीं सोचा जाता कि कोई सुन लेगा तो क्या कहेगा?


सैफू.

0 comments:

Post a Comment