मस्तानों का महक़मा

वक्त-बे-वक्त बनती गुच्छों की कहानियों का खुलासा हर टूटे दाने से परखने की कोशिश और सिमटते हुए दायरों को भराव देना क्या यही है वो जगह? जहां अपने बनाए माहौल में किसी का आमंत्रण हैर-फैर करता रहता है। मनचाही मौजूदगी में मिले खुलेपन को वक्त-बे-वक्त थूकता नज़र आता है यह महकमा। किसी की मौजूदगी को कभी स्वीकार कर लेता है तो कभी प्रदूषित शब्दों का प्रयोग कर निकाल फैंकता है, अपनी नज़रों से दूर।

न मानने पर तोहीनें देता है और आपका नामकरण कर आपको जोड़ लेता है! आपकी आदत या आपका स्वभाव समझकर।

लोग बुंद-ब-बुंद बंधते और खैंचने पर टूटते नज़र आते हैं। हर कोई एक खुलेपन और आजादी मिलने वाली जगहों की तलाश में रहता है,वो ही आकर्षण उसे अपनी ओर खैंचकर गोद में बैठाकर आनंद से झूलाता है।
पर इसे पाने की भी केई शर्ते हैं, आजादी से मिले माहौल को आप कैसे स्वीकारते हो?

कभी तो अच्छे होते हो, तो कभी बुरे बन कोने में नज़र आते हो।
अच्छा बनने में पीठ थपथपा सीना चोड़ा कर इकठ्ठा करना वाह-वाही के कॉमेन्ट और बुरे में सज़ा-ए-ढीटकार दोनों को स्वीकारना पड़ता है यहां।

एक बने बनाए माहौल को हम कब स्वीकार लेते हैं?
यह समय सीढी नुमा होता है जिसमे स्टेप-ब-स्टेप कुरेदने के स्वभाव से जानते चले जाते हैं। उस कुरेदेपन से उस जगह मे हम अपनी समझ को और गाढ़ा करते रहते हैं।

उम्र इसमे कोई मायने नही रखती मायने रखता है तो आपका समय जो आप अपनी नियमित रोज़मर्रा में से खैंचकर निकालते हो। वो समय ही आप को जूनियर और सीनियर वाले ओदे पर रखता है।

आप का समय और लोगों से संवाद अपने आपको परखने और लोगों को परखने के मापदण्ड को तैयार करता है।
वो मापदण्ड जो मापने के साथ-साथ आपका एक हिस्सा बन जाता है लोगों को समझने और जानने का। बाहरी दुनियां की रुटीन में कोई न कोई इस मापदण्ड को लिए लोगों से मिलने के अवसरों की तलाश में लगा रहता है। जगह अपनी मौजूदगी को दिखाने के लिए लड़ती रहती है समाज के बनाए नियमों से जो रुढ़ीगणना से गठित है।


मनोज

1 comments:

मस्तानों का महक़मा January 27, 2009 at 12:15 PM  

बहुत बड़ियां इसी तरह लगे रहों .... जिंदगी मे सफलता ही पाओगे ।
क्योंकि सफलता ही जिंदगी की कुन्जी है।
आपकी शुभ चिन्तक...
best of luck

Post a Comment